Mahakaleshwar Jyotirlinga
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है।
Baba Baidyanath Dham
वैद्यनाथ मन्दिर भारतवर्ष के झारखण्ड राज्य के देवघर नामक स्थान में अवस्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। शिव का एक नाम 'वैद्यनाथ भी है, इस कारण लोग इसे 'वैद्यनाथ धाम' भी कहते हैं। यह एक सिद्धपीठ है। इस कारण इस लिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं। देवघर में शिव का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है।
PASHUPATINATH
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है।
Grishneswar Jyotirlinga
महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं।
Kashi Vishwanath
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव के 12 ज्योतिर्लिंग और उनसे जुड़े रहस्य
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हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। हनुमान जी की कृपा से समस्त व्याधियों से छुटकारा प्राप्त होता है एवं असंभव कार्य भी सुगम होते देखे जाते हैं। भयंकर से भयंकर तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र और भूत-प्रेत भी हनुमान जी के सम्मुख टिक नहीं पाते।

कहा जाता है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के 108 नामों (Shri Krishna Ke108 Naam) का जाप करने से प्रभु बहुत जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मुरादें शीघ्र पूर्ण कर देते हैं।
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हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से अत्यंत चमत्कारी प्रभाव आपके जीवन में दिखाई पड़ेंगे।

कृष्ण वैराग्य का अर्थ और मानवीय चेतना तथा कर्म पर प्रकृति के गुणों का प्रभाव समझाते हैं। वे ब्रह्म-अनुभूति, भगवद्गीता की महिमा तथा भगवद्गीता के चरम निष्कर्ष को समझाते हैं। यह चरम निष्कर्ष यह है कि धर्म का सर्वोच्च मार्ग भगवान् कृष्ण की परम शरणागति है जो पूर्ण प्रकाश प्रदान करने वाली है और मनुष्य को कृष्ण के नित्य धाम को वापस जाने में समर्थ बनाती है।

भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से तीन प्रकार की श्रद्धा उत्पन्न होती है। रजोगुण तथा तमोगुण में श्रद्धापूर्वक किये गये कर्मों से अस्थायी फल प्राप्त होते हैं, जबकि शास्त्र-सम्मत विधि से सतोगुण में रहकर सम्पन्न कर्म हृदय को शुद्ध करते हैं। ये भगवान् कृष्ण के प्रति शुद्ध श्रद्धा तथा भक्ति उत्पन्न करने वाले होते हैं।

शास्त्रों के नियमों का पालन न करके मनमाने ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले तथा आसुरी गुणों वाले व्यक्ति अधम योनियों को प्राप्त होते हैं और आगे भी भवबन्धन में पड़े रहते हैं। किन्तु दैवी गुणों से सम्पन्न तथा शास्त्रों को आधार मानकर नियमित जीवन बिताने वाले लोग आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करते हैं।

वैदिक ज्ञान का चरम लक्ष्य अपने आपको भौतिक जगत के पाश से विलग करना तथा कृष्ण को भगवान् मानना है। जो कृष्ण के परम स्वरूप को समझ लेता है, वह उनकी शरण ग्रहण करके उनकी भक्ति में लग जाता है।

सारे देहधारी जीव भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अधीन हैं—ये हैं सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। कृष्ण बतलाते हैं कि ये गुण क्या हैं? ये हम पर किस प्रकार क्रिया करते हैं? कोई इनको कैसे पार कर सकता है? और दिव्य पद को प्राप्त व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं?

जो व्यक्ति शरीर, आत्मा तथा इनसे भी परे परमात्मा के अन्तर को समझ लेता है, उसे इस भौतिक जगत से मोक्ष प्राप्त होता है।