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एक समय की बात है ज्ञानी शिरोमणि परमतेजस्वी मुनिवर गर्ग जी, जो योग शास्त्र के सूर्य है, शौनक जी से मिलने के लिए उनके आश्रम में आये . उन्हें आता देख शौनक जी ख़ुशी से उठकर खड़े हो गये और उनका स्वागत किया . उनके बैठने के बाद शौनक जी ने कहा . महात्मा, मेरे मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई है कि भगवान के अवतार कितने प्रकार के है ? कृपया मुझे बताये !

शक्तिशाली योद्धा अर्जुन युद्धाभिमुख विपक्षी सेनाओं में अपने निकट सम्बन्धियों, शिक्षकों तथा मित्रों को युद्ध में अपना- अपना जीवन उत्सर्ग करने के लिए उद्यत देखता है। वह शोक तथा करुणा से अभिभूत होकर अपनी शक्ति खो देता है, उसका मन मोहग्रस्त हो जाता है और वह युद्ध करने के अपने संकल्प को त्याग देता है।

अर्जुन शिष्य-रूप में कृष्ण की शरण ग्रहण करता है और कृष्ण उससे नश्वर भौतिक शरीर तथा नित्य आत्मा के मूलभूत अन्तर की व्याख्या करते हुए अपना उपदेश प्रारम्भ करते हैं। भगवान् उसे देहान्तरण की प्रक्रिया, परमेश्वर की निष्काम सेवा तथा स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के गुणों से अवगत कराते हैं ।

इस भौतिक जगत में हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार के कर्म में प्रवृत्त होना पड़ता है। किन्तु ये ही कर्म उसे इस जगत से बाँधते या मुक्त कराते हैं। निष्काम भाव से परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए कर्म करने से मनुष्य कर्म के नियम से छूट सकता है और आत्मा तथा परमेश्वर विषयक दिव्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है।

आत्मा, ईश्वर तथा इन दोनों से सम्बन्धित दिव्य ज्ञान शुद्ध करने, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। ऐसा ज्ञान कर्मयोग का फल है। भगवान् गीता के प्राचीन इतिहास, इस भौतिक जगत में बारम्बार अपने अवतरण की महत्ता तथा गुरु के पास जाने की आवश्यकता का उपदेश देते हैं।

ज्ञानी पुरुष दिव्य ज्ञान की अग्नि से शुद्ध होकर बाह्यत: सारे कर्म करता है, किन्तु अन्तर में उन कर्मों के फल का परित्याग करता हुआ शान्ति, विरक्ति, सहिष्णुता, आध्यात्मिक दृष्टि तथा आनन्द की प्राप्ति करता है।

अष्टांगयोग मन तथा इन्द्रियों को नियन्त्रित करता है और ध्यान को परमात्मा पर केन्द्रित करता है। इस विधि की परिणति समाधि में होती है।

भगवान् कृष्ण समस्त कारणों के कारण, परम सत्य हैं। महात्मागण भक्तिपूर्वक उनकी शरण ग्रहण करते हैं, किन्तु अपवित्र जन पूजा के अन्य विषयों की ओर अपने मन को मोड़ देते हैं।

भक्तिपूर्वक भगवान् कृष्ण का आजीवन स्मरण करते रहने से और विशेषतया मृत्यु के समय ऐसा करने से मनुष्य परम धाम को प्राप्त कर सकता है।

भगवान् श्रीकृष्ण परमेश्वर हैं और पूज्य हैं। भक्ति के माध्यम से जीव उनसे शाश्वत सम्बद्ध है। शुद्ध भक्ति को जागृत करके मनुष्य कृष्ण के धाम को वापस जाता है।