
एक समय की बात है ज्ञानी शिरोमणि परमतेजस्वी मुनिवर गर्ग जी, जो योग शास्त्र के सूर्य है, शौनक जी से मिलने के लिए उनके आश्रम में आये . उन्हें आता देख शौनक जी ख़ुशी से उठकर खड़े हो गये और उनका स्वागत किया . उनके बैठने के बाद शौनक जी ने कहा . महात्मा, मेरे मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई है कि भगवान के अवतार कितने प्रकार के है ? कृपया मुझे बताये !
तब गर्ग जी बोले, इस प्रसंग में एक प्राचीन इतिहास का कथन किया जाता है, जिसके सुनने मात्र से बड़े बड़े पाप नष्ट हो जाते है . बहुत पहले की बात है, मिथिलापुरी में बहुलाश्व नाम से विख्यात एक प्रतापी राजा राज करते थे . वे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त, शांतचित एवं अहंकार से रहित थे . एक दिन मुनिवर नारद जी आकाशमार्ग से उतरकर उनके यहाँ पधारे . उन्हें उपस्थित देखकर राजा ने उन्हें आसन पर बिठाया और भलीभांति उनकी पूजा करके हाथ जोड़कर उनसे इस प्रकार पूछा . महामते. संतो की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के कितने प्रकार के अवतार होते हैं ? कृपया मुझे बताएं .
नारद जी बोले, हे राजन. व्यास आदि मुनियों ने अशांश, अंश, आवेश, पूर्ण और परिपूर्णतम. यह छः प्रकार के अवतार बताएं है . इनमे छठा परिपूर्णतम अवतार साक्षात् भगवान श्री कृष्ण ही है . मरीचि आदि अशांश अवतार, ब्रह्मा आदि अंश अवतार, कपिल एवं कुर्म प्रभृति कला अवतार और परशुराम आदि आवेश अवतार कहे गये है . नरसिंह, राम, श्वेतद्विपाधिपति हरि, वैकुण्ठ, यज्ञ और नर-नारायण. ये पूर्ण अवतार है एवं, साक्षात् भगवान श्री कृष्ण ही परिपूर्णतम अवतार है . असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति वे प्रभु गोलोक धाम में विराजते हैं. जो भगवान् के दिये सृष्टि आदि कार्यमात्र के अधिकार का पालन करते हैं, वे ब्रह्मा आदि ‘सत्’ (सत्स्वरूप भगवान्) के अंश हैं. जो उन अंशों के कार्य भार में हाथ बटाते हैं, वे ‘अंशांशावतार’ के नामसे विख्यात हैं। परम बुद्धिमान् नरेश ! भगवान् विष्णु स्वयं जिनके अन्तःकरण में आविष्ट हो, अभीष्ट कार्य का सम्पादन करके फिर अलग हो जाते हैं, राजन् ! ऐसे नानाविध अवतारोंको ‘आवेशावतार’ समझो. जो प्रत्येक युगमें प्रकट हो, युगधर्मको जानकर, उसकी स्थापना करके, पुनः अन्तर्धान हो जाते हैं, भगवान् के उन अवतारों को ‘कलावतार’ कहा गया है. जहाँ चार व्यूह प्रकट हों-जैसे श्रीराम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न एवं वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध, तथा जहाँ नौ रसों की अभिव्यक्ति देखी जाती हो एवं जहाँ बल-पराक्रम की भी पराकाष्ठा दृष्टिगोचर होती हो, भगवान् के उस अवतारको ‘पूर्णावतार’ कहा गया है जिसके अपने तेज में अन्य सम्पूर्ण तेज विलीन हो जाते हैं, भगवान् के उस अवतार को श्रेष्ठ विद्वान् पुरुष साक्षात् ‘परिपूर्णतम’ बताते हैं. जिस अवतार में पूर्ण का पूर्ण लक्षण दृष्टिगोचर होता है और मनुष्य जिसे पृथक्- पृथक् भाव के अनुसार अपने परम प्रिय रूप में देखते हैं, वही यह साक्षात् ‘परिपूर्णतम’ अवतार है. स्वयं परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्ण ही हैं, दूसरा नहीं; क्योंकि श्रीकृष्ण ने एक कार्य के उद्देश्य से अवतार लेकर अन्य-अन्य करोड़ों कार्यों का सम्पादन किया है. जो पूर्ण, पुराण पुरुषोत्तमोत्तम एवं परात्पर पुरुष परमेश्वर हैं.