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हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। हनुमान जी की कृपा से समस्त व्याधियों से छुटकारा प्राप्त होता है एवं असंभव कार्य भी सुगम होते देखे जाते हैं। भयंकर से भयंकर तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र और भूत-प्रेत भी हनुमान जी के सम्मुख टिक नहीं पाते।

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कहा जाता है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के 108 नामों (Shri Krishna Ke108 Naam) का जाप करने से प्रभु बहुत जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मुरादें शीघ्र पूर्ण कर देते हैं।

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हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से अत्यंत चमत्कारी प्रभाव आपके जीवन में दिखाई पड़ेंगे।

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कृष्ण वैराग्य का अर्थ और मानवीय चेतना तथा कर्म पर प्रकृति के गुणों का प्रभाव समझाते हैं। वे ब्रह्म-अनुभूति, भगवद्गीता की महिमा तथा भगवद्गीता के चरम निष्कर्ष को समझाते हैं। यह चरम निष्कर्ष यह है कि धर्म का सर्वोच्च मार्ग भगवान् कृष्ण की परम शरणागति है जो पूर्ण प्रकाश प्रदान करने वाली है और मनुष्य को कृष्ण के नित्य धाम को वापस जाने में समर्थ बनाती है।

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भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से तीन प्रकार की श्रद्धा उत्पन्न होती है। रजोगुण तथा तमोगुण में श्रद्धापूर्वक किये गये कर्मों से अस्थायी फल प्राप्त होते हैं, जबकि शास्त्र-सम्मत विधि से सतोगुण में रहकर सम्पन्न कर्म हृदय को शुद्ध करते हैं। ये भगवान् कृष्ण के प्रति शुद्ध श्रद्धा तथा भक्ति उत्पन्न करने वाले होते हैं।

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शास्त्रों के नियमों का पालन न करके मनमाने ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले तथा आसुरी गुणों वाले व्यक्ति अधम योनियों को प्राप्त होते हैं और आगे भी भवबन्धन में पड़े रहते हैं। किन्तु दैवी गुणों से सम्पन्न तथा शास्त्रों को आधार मानकर नियमित जीवन बिताने वाले लोग आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करते हैं।

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वैदिक ज्ञान का चरम लक्ष्य अपने आपको भौतिक जगत के पाश से विलग करना तथा कृष्ण को भगवान् मानना है। जो कृष्ण के परम स्वरूप को समझ लेता है, वह उनकी शरण ग्रहण करके उनकी भक्ति में लग जाता है।

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सारे देहधारी जीव भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अधीन हैं—ये हैं सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। कृष्ण बतलाते हैं कि ये गुण क्या हैं? ये हम पर किस प्रकार क्रिया करते हैं? कोई इनको कैसे पार कर सकता है? और दिव्य पद को प्राप्त व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं?

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जो व्यक्ति शरीर, आत्मा तथा इनसे भी परे परमात्मा के अन्तर को समझ लेता है, उसे इस भौतिक जगत से मोक्ष प्राप्त होता है।

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कृष्ण के शुद्ध प्रेम को प्राप्त करने का सबसे सुगम एवं सर्वोच्च साधन भक्तियोग है। इस परम पथ का अनुसरण करने वालों में दिव्य गुण उत्पन्न होते हैं।

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भगवान् कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और विश्व-रूप में अपना अद्भुत असीम रूप प्रकट करते हैं। इस प्रकार वे अपनी दिव्यता स्थापित करते हैं। कृष्ण बतलाते हैं कि उनका सर्व आकर्षक मानव-रूप ही ईश्वर का आदि रूप है। मनुष्य शुद्ध भक्ति के द्वारा ही इस रूप का दर्शन कर सकता है।